11 August 2017

बस का सफर

बस के सफर में

कुछ अजीब सा माहौल

हमसे पेश आया

लड़कियों को मैं भइया

और औरतो को मैं

भिखारी नज़र आया

बस थी भरी तो

इस में मेरा

कसूर क्या था

पुरूष तो थे

एक आध दर्ज़न

बाकी बस औरतों से भरी थी

जहा भी पैर रखा तो गाली

जो हिला तो थप्पड़

उन्हे मैं इकलौता इंसान

हाथ साफ़ करने का

टिश्यू पेपर नज़र आया।

चलो खूबसूरत लड़कियों ने

मारा था तो अच्छा था

पर क्यूं बदसूरतों ने

अपना हाथ साफ़ किया

कुछ तो थीं उनमें

हिलती-दुलती चाचियाँ भी शामिल

जिनका चलना-फिरना ही

एक करिश्मा था

किस तरह तोडा उन्होंने 

एक नादान से बच्चे को

जैसे वो सब कबाडी 

और मैं उन्हें हाथ साफ़ करने का

टिश्यू पेपर नज़र आया। 

                                                                      कवि :- श्री अनुभव शर्मा 

2 comments:

  1. kya khoob likha hai aapne Anubhav Ji
    Aise hi rachnaye Rachte Jaye Aur hume Hasate jaye

    ReplyDelete

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