26 August 2017

ज़र्रे को आफताब होना था................

हुस्न को बे-हिज़ाब होना था
शौक़ को कामयाब होना था

हिजर में कैफ-ऐ-इज़्तेराब न पूछ
खून -ऐ -दिल भी शराब होना था

तेरे जलवों पे मर मिट गए आखिर
ज़र्रे को आफताब होना था

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी खराब होना था

रात तारों का टूटना भी ‘मजाज़’
बाइस -ऐ -ना उम्मीद होना था

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